आज फिर ....... / रंजना भाटिया
खो गये आज लफ़्ज़ मेरे कैसे में लिखूँ वो दास्तान
जिसको करते हुए उस हैवान का दिल काँपा नहीं
फिर से " निठारी का क़िस्सा" बन गयी एक मासूम ज़िंदगी
आज फिर से इंसानियत शर्मसार हुई है !!
आज फिर से उसको एक खिलौना समझ के तोड़ा गया
दे के आइस-क्रिम का लालच उसकी अस्मत को लूटा गया
फिर से दोहराई गई वही वहशत की दासताँ
फिर से लड़की होने का तगादा किया गया।
मुरझा गयी फिर से एक कली मेरे देश के बाग़बाँ की
फिर से आज एक मासूम को भरे बाज़ार में नंगा किया गया
फिर से छीन ली एक नन्हीं कली की मुस्कान
फिर से उसकी पहचान को मिट्टी तले रोंदा गया
उड़ेगी बस "ख़बरो " में इस किस्से की धज्जियाँ
क्या बीता उस मासूम के दिल पर यह कब सोचा गया
यूँ ही कब तलक़ मुर्झाती रहेगी मेरे देश की मासूम कलियाँ
कभी दे के उसको कोख में क़ब्र, कभी यूँ जीना मुश्किल किया गया!!
जाने कब समझा पाएगा यह समाज़ एक मासूम के दर्द को
क्यूँ उसका जन्म लेना हर बार यूँ अभिशापित ही समझा गया !!