जाने कैसे / रंजना भाटिया
जाने कैसे ज़िंदगी का वक़्त बीतता जाता है
कुछ सिमट के यहाँ बिखरता जाता है
थे जो दिल के क़रीब कभी आज वही दूर हैं
फ़ासलों का पैमाना छलकता जाता है
दरिया के पास रह कर भी सूखे रहे हम
एक क़तरा इश्क़ का समुंदर में बदलता जाता है
चाहा दिल ने बहुत की ढलूं में भी ज़माने के रंग में
पर यह ज़माना ही मेरे रंग में रंगता जाता है
वो कहते हैं की सुधरना होगा तुम्हे इन हालात में
वही मेरी राह पर चल के बिगड़ता सा जाता है
जाने यह प्यार अब दुनिया से कहाँ रुख़्सत हो गया
एक नशा यहाँ जिस्म का ही बस हर तरफ़ नज़र आता है
हरे पेड़ों पर क्यूँ नज़र आते हैं सूखे से पत्ते
दिल मेरा आज किस हादसे से यूँ घबरा सा जाता है
दिल मेरा है शायद एक टूटी हुई दीवार का घर कोई
यहाँ हर कोई आ के फिर से अपनी राहा में गुम हो जाता है
हर चेहरे में तलाश करता है मेरा दिल तुझको
कैसी तेरी यह तस्वीर है जो दिल फिर से जोड़ नही पाता है
आज क्यूं अजब सी खामोशी हम दोनो में
कोई क़िस्सा फिर से अफ़साना बना जाता है
लबो पर देखा है उनके एक हलका सा तब्बसुम
क्या अभी भी मेरा कहा उनके दिल को छू जाता है !!