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अपनापा / हरीश बी० शर्मा
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मैं
हाथ तेरा हाथ में ले
पवन बांधू साथ
चलूँ सागर सात,
सातो भौम
अपनापा रचूँ।
मैं रचूँ एक-एक अणु में आस्था
भाव भर दूँ
सूत्र-से साकार दूँ।
कुछ पैहरन बेकार
वो उतार दूँ
हो वही मौलिक
कि जितना रच रहा
आवरण सारे वृथा उघाड़ दूँ।