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क्योंकि आदमी हैं हम-1 / हरीश बी० शर्मा

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मैं सरयू तट पर नाव लेकर
आरण्यक में एक से दूसरी शाख पर झूलते
लंका में अस्तित्त्वबोध के शब्द को संजोए
अपनी कुटिया में रामनाम मांडे
अलख जगाए- धूनी रमाए
प्रतीक्षा करता हूँ- प्रभु की
और निष्ठुर प्रभु आते ही नहीं।