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एक कुंज / बाबू महेश नारायण
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एक कुंज,
बहुत गुंज,
पेड़ों से घिरा था
झरने के बग़ल में
बिजली की चमक भी न पहुँचती थी वहाँ तक
ऐसा वह घिरा था
जस दीप हो जल में
पानी की टपक राह भला पावे कहाँ तक।