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बिजली की चमक में / बाबू महेश नारायण

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बिजली की चमक में
रौशन हुआ चिहरा,
देखा तो परी है
नाजों से भरी है,
घुंघर वाले बाल
मखमल के दो गाल
तवा नाज़ुक प उस के कुछ था मलाल।
बाल विखरे थे वस्त्र का न ख्याल;
लाव रायता गुलाबी
सूखी थी एक ज़रीसी।
सुन्दर कोमलता उसकी
जस तीक्ष्ण हवा उस में हो लगी-
मानों पद्मम को तोड़ पहाड़ प, लाये हों।