मेरा जीवन / महादेवी वर्मा
स्वर्ग का था नीरव उच्छवास
देव-वीणा का टूटा तार,
मृत्यु का क्षणभंगुर उपहार
रत्न वह प्राणों का श्रॄंगार;
नई आशाओं का उपवन
मधुर वह था मेरा जीवन!
क्षीरनिधि की थी सुप्त तरंग
सरलता का न्यारा निर्झर,
हमारा वह सोने का स्वप्न
प्रेम की चमकीली आकर;
शुभ्र जो था निर्मेघ गगन
सुभग मेरा संगी जीवन!
अलक्षित आ किसने चुपचाप
सुना अपनी सम्मोहन तान,
दिखाकर माया का साम्राज्य
बना ड़ाला इसको अज्ञान;
मोह मदिरा का आस्वादन
किया क्यों हे भोले जीवन!
तुम्हें ठुकरा जाता नैराश्य
हँसा जाती है तुमको आस,
नचाता मायावी संसार
लुभा जाता सपनों का हास;
मानते विष को संजीवन
मुग्ध मेरे भूले जीवन!
न रहता भौंरों का आह्वान
नहीं रहता फूलों का राज्य,
कोकिला होती अन्तर्धान
चला जाता प्यारा ऋतुराज;
असम्भव है चिर सम्मेलन,
न भूलो क्षणभंगुर जीवन!
विकसते मुरझाने को फूल
उदय होता छिपने को चंद,
शून्य होने को भरते मेघ
दीप जलता होने को मन्द;
यहां किसका अनन्त यौवन?
अरे अस्थिर छोटे जीवन।
छलकती जाती है दिन रैन
लबालब तेरी प्याली मीत,
ज्योति होती जाती है क्षीण
मौन होता जाता संगीत;
करो नयनों का उन्मीलन
क्षणिक हे मतवाले जीवन!
शून्य से बन जाओ गंभीर
त्याग की हो जाओ झंकार,
इसी छोटे प्याले में आज
डुबा ड़ालो सारा संसार;
लजा जायें यह मुग्ध सुमन
बनो ऐसे छोटे जीवन!
सखे! यह माया का देश
क्षणिक है मेरा तेरा संग,
यहाँ मिलता काँटों में बन्धु!
सजीला सा फूलों का रंग;
तुम्हे करना विच्छेद सहन
न भूलो हे प्यारे जीवन!