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अनन्त की ओर / महादेवी वर्मा

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गरजता सागर तम है घोर
घटा घिर आई सूना तीर,
अंधेरी सी रजनी में पार
बुलाते हो कैसे बेपीर?

नहीं है तरिणी कर्णाधार
अपरिचित है वह तेरा देश,
साथ है मेरे निर्मम देव!
एक बस तेरा ही संदेश।

हाथ में लेकर जर्जर बीन
इन्हीं बिखरे तारों को जोर,
लिए कैसे पीड़ा का भार
देव जाऊँ अनन्त की ओर!