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मेरे पंख कट गए हैं / रमानाथ अवस्थी

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कवि: रमानाथ अवस्थी

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मेरे पंख कट गये हैं

वरना मैं गगन को गाता।


कोई मुझे सुनावो

फिर से वही कहानी,

कैसे हुई थी मीरा

घनश्याम की दीवानी।

मीरा के गीत को भी

कोई विष रहा सताता


कभी दुनिया के दिखावे

कभी खुद में डूबता हूं,

थोड़ी देर खुश हुआ तो

बड़ी देर ऊबता हूं।

मेरा दिल ही मेरा दुश्मन

कैसे दोस्ती निभाता!


मेरे पास वह नहीं है

जो होना चाहिये था,

मैं मुस्कराया तब भी

जब रोना चाहिये था।

मुझे सबने शक से देखा

मैं किसको क्या बताता?


वह जो नाव डूबनी है

मैं उसी को खे रहा हूं,

तुम्हें डूबने से पहले

एक भेद दे रहा हूं।

मेरे पास कुछ नहीं है

जो तुमसे मैं छिपाता।