भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
साथ हर हिचकी के लब पर उनका नाम आया तो क्या? / आरज़ू लखनवी
Kavita Kosh से
चंद्र मौलेश्वर (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:46, 25 सितम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=आरज़ू लखनवी }} <poem> साथ हर हिचकी के लब पर उनका नाम आ...)
साथ हर हिचकी के लब पर उनका नाम आया तो क्या?
जो समझ ही में न आये वो पयाम आया तो क्या?
मय से हूँ महरूप अब भी, जो शरीके-दौर हूँ।
पाए साक़ी से जो ठोकर खाके जाम आया तो क्या?