भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
स्वीकारोक्ति / होदा एल्बन
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:22, 26 सितम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKAnooditRachna |रचनाकार=होदा एल्बन |संग्रह= }} Category:अरबी भाषा <Poem> कई बार ...)
|
कई बार
रात के बीचो-बीच
फूट-फूट पड़ती है
मेरी रुलाई...
फिर
अपने आँसुओं को
मना कर
भेजती हूँ वापस
उन्हीं से
आज जगमग है
ये दुनिया
और
बुझ पाई है
मेरी धधक भी...
अंग्रेज़ी से अनुवाद : यादवेन्द्र