भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जीवन में शेष विषाद रहा / हरिवंशराय बच्चन

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:21, 26 सितम्बर 2009 का अवतरण

यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जीवन में शेष विषाद रहा!


कुछ टूटे सपनों की बस्‍ती,

मिटने वाली यह भी हस्‍ती,

अवसाद बसा जिस खंडहर में, क्‍या उसमें ही उन्‍माद रहा!

जीवन में शेष विषाद रहा!


यह खंडहर ही था रंगमहल,

जिसमें थी मादक चहल-पहल,

लगता है यह खंडहर जैसे पहले न कभी आबाद रहा!

जीवन में शेष विषाद रहा!


जीवन में थे सुख के दिन भी,

जीवन में थे दुख के दिन भी,

पर, हाय, हुआ ऐसा कैसे, सुख भूल गया, दुख याद रहा!

जीवन में शेष विषाद रहा!