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कुछ न कुछ लाचारी होगी / ललित मोहन त्रिवेदी

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कुछ न कुछ लाचारी होगी, प्यास प्राण पर भारी होगी !
यूँ ही नहीं किसी के आगे, उसने बांह पसारी होगी !!

नेह व्यथा से सृजन कथा तक, सब दस्तूर निराले देखे !
बच-बच कर चलने वालों के, पांवों में ही छाले देखे !
जान-बूझ कर जो स्वीकारी, भूल बहुत ही प्यारी होगी !!
यूँ ही नहीं ...............

प्यार किया है तो करने का, यह अभिमान कहाँ से आया ?
सब कुछ यहाँ लुटाया था तो, फ़िर मस्तक कैसे उग आया ?
जो चाहे प्रतिदान प्रेम में, सिर्फ़ बुद्धि व्यापारी होगी !!
यूँ ही नहीं ................

दरिया भी सागर है माना, लेकिन कुछ हटकर बहता है !
दर्पण झूठ न बोले फ़िर भी, बाएँ को दायां कहता है !
तुम अभिमान जिसे समझे हो , वह शायद खुद्दारी होगी !!
यूँ ही नहीं ................

मौन प्यार अच्छा है लेकिन, जी तो करता है कुछ गाऊँ !
घुंघरू पाँव बंधे हैं मेरे, तो झनकार कहाँ ले जाऊं !
यह थिरकन स्वीकार न की तो, ख़ुद से ही गद्दारी होगी !!
यूँ ही नहीं .............