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मूल्य दे सुख के क्षणों का / हरिवंशराय बच्चन

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मूल्य दे सुख के क्षणों का!
एक पल स्वच्छंद होकर
तू चला जल, थल, गगन पर,
हाय! आवाहन वही था विश्व के चिर बंधनों का!
मूल्य दे सुख के क्षणों का!

पा निशा की स्वप्न छाया
एक तूने गीत गाया,
हाय! तूने रुद्ध खोला द्वार शत-शत क्रंदनों का!
मूल्य दे सुख के क्षणों का!

आँसुओं से ब्याज भरते
अनवरत लोचन सिहरते,
हाय! कितना बढ़ गया ॠण होंठ के दो मधुकणों का!
मूल्य दे सुख के क्षणों का!