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निर्मल वर्मा की कहानियाँ-2 / मनीष मिश्र
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ये आपको भरती नहीं हैं
ये सब कुछ उलीच देती है
ये जाती हैं आपके जगमग पड़ोस में
और रख आती हैं एक सुगबुगाता मौन
ये दुख और मौन के विलक्षण अरण्य में भटकती हैं
ये देती जन्म एक शुरूआत को
जब ये ख़त्म होती हैं