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है हार नहीं यह जीवन में / हरिवंशराय बच्चन

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है हार नहीं यह जीवन में!

जिस जगह प्रबल हो तुम इतने,
हारे सब हैं मानव जितने,
उस जगह पराजित होने में है ग्लानि नहीं मेरे मन में!
है हार नहीं यह जीवन में!

मदिरा-मज्जित कर मन-काया,
जो चाहा तुमने कहलाया,
क्या जीता यदि जीता मुझको मेरी दुर्बलता के क्षण में!
है हार नहीं यह जीवन में!

सुख जहाँ विजित होने में है,
अपना सब कुछ खोने में है,
मैं हारा भी जीता ही हूँ जग के ऐसे समरांगण में!
है हार नहीं यह जीवन में!