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मैं भूला भूला सा जग में / हरिवंशराय बच्चन

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मैं भूला-भूला-सा जग में!

अगणित पंथी हैं इस पथ पर,
है किंतु न परिचित एक नजर,
अचरज है मैं एकाकी हूँ जग के इस भीड़ भरे मग में।
मैं भूला-भूला-सा जग में!

अब भी पथ के कंकड़-पत्थर,
कुश, कंटक, तरुवर, गिरि गह्वर,
यद्यपि युग-युग बीता चलते, नित नूतन-नूतन ड़ग-ड़ग में!
मैं भूला-भूला-सा जग में!

कर में साथी जड़ दण्ड़ अटल,
कंधों पर सुधियों का संबल,
दुख के गीतों से कंठ भरा, छाले, क्षत, क्षार भरे पग में!
मैं भूला-भूला-सा जग में!