भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अग्नि देश से आता हूँ मैं / हरिवंशराय बच्चन

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:20, 29 सितम्बर 2009 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अग्नि देश से आता हूँ मैं!


झुलस गया तन, झुलस गया मन,

झुलस गया कवि-कोमल जीवन,

किंतु अग्नि-वीणा पर अपने दग्‍ध कंठ से गाता हूँ मैं!

अग्नि देश से आता हूँ मैं!


स्‍वर्ण शुद्ध कर लाया जग में,

उसे लुटाता आया मग में,

दीनों का मैं वेश किए, पर दीन नहीं हूँ, दाता हूँ मैं!

अग्नि देश से आता हूँ मैं!


तुमने अपने कर फैलाए,

लेकिन देर बड़ी कर आए,

कंचन तो लुट चुका, पथिक, अब लूटो राख लुटाता हूँ मैं!

अग्नि देश से आता हूँ मैं!