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मैं जीवन की शंका महान / हरिवंशराय बच्चन
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मैं जीवन की शंका महान!
युग-युग संचालित राह छोड़,
युग-युग संचित विश्वास तोड़!
मैं चला आज युग-युग सेवित,
पाखंड-रुढ़ि से बैर ठान।
मैं जीवन की शंका महान!
होगी न हृदय में शांति व्याप्त,
कर लेता जब तक नहीं प्राप्त,
जग-जीवन का कुछ नया अर्थ,
जग-जीवन का कुछ नया ज्ञान।
मैं जीवन की शंका महान!
गहनांधकार में पाँव धार,
युग नयन फाड़, युग कर पसार,
उठ-उठ, गिर-गिरकर बार-बार
मैं खोज रहा हूँ अपना पथ,
अपनी शंका का समाधान।
मैं जीवन की शंका महान!