Last modified on 30 सितम्बर 2009, at 06:51

आस्था-2 / राजीव रंजन प्रसाद

Rajeevnhpc102 (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 06:51, 30 सितम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: '''आस्था -२'''<br /> हमारे बीच बहुत कुछ टूट गया है<br /> हमारे भीतर बहुत कुछ छ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

आस्था -२

हमारे बीच बहुत कुछ टूट गया है
हमारे भीतर बहुत कुछ छूट गया है
कैसे दर्द नें तराश कर बुत बना दिया हमें
और तनहाई हमसे लिपट कर
हमारे दिलों की हथेलियाँ मिलानें को तत्पर है
पत्थर फिर बोलेंगे
ये कैसी आस्था?