भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आस्था-5 / राजीव रंजन प्रसाद
Kavita Kosh से
Rajeevnhpc102 (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 07:07, 30 सितम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: '''आस्था -५'''<br /> तुमनें<br /> बहते हुए पानी में<br /> मेरा ही तो नाम लिखा था<br ...)
आस्था -५
तुमनें
बहते हुए पानी में
मेरा ही तो नाम लिखा था
और ठहर कर हथेलियों से भँवरें बना दीं
आस्थायें अबूझे शब्द हो गयी हैं
मिट नहीं सकती लेकिन..
आस्था -६
मेरे कलेजे को कुचल कर
तुम्हारे मासूम पैर ज़ख्मी तो नहीं हुए?
मेरे प्यार
मेरी आस्थायें सिसक उठी हैं
इतना भी यकीं न था तुम्हें
कह कर ही देखा होता कि मौत आये तुम्हें
कलेजा चीर कर
तुम्हें फूलों पर रख आता..