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आस्था-6 / राजीव रंजन प्रसाद

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मेरे कलेजे को कुचल कर
तुम्हारे मासूम पैर ज़ख्मी तो नहीं हुए?
मेरे प्यार
मेरी आस्थाएँ सिसक उठी हैं
इतना भी यकीं न था तुम्हें
कह कर ही देखा होता कि मौत आए तुम्हें
कलेजा चीर कर
तुम्हें फूलों पर रख आता..