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नई यह कोई बात नहीं / हरिवंशराय बच्चन

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नई यह कोई बात नहीं।

कल केवल मिट्टी की ढ़ेरी,
आज ’महत्ता’ इतनी मेरी,
जगह-जगह मेरे जीवन की जाती बात कही।
नई यह कोई बात नहीं।

सत्य कहे जो झूठ बनाए,
भला-बुरा जो जी में आए,
सुनते हैं क्यों लोग--पहेली मेरे लिए रही।
नई यह कोई बात नहीं।

कवि था कविता से था नाता,
मुझको संग उसी का भाता,
किंतु भाग्य ही कुछ ऐसा है,
फेर नहीं मैं उसको पाता।
जहाँ कहीं मैं गया कहानी मेरे साथ रही।
नई यह कोई बात नहीं।