याद किसी की चांदनी बन कर कोठे-कोठे छिटकी है
याद किसी की धूप हुई है ज़ीना-ज़ीना उतरी है
रात की रानी सहने-चमन में गेसू खोले सोती है
रात बॆ रात उधर मत जाना इक नागिन भी रहती है
तुमकॊ क्या ग़ज़लें कह कर अपनी आग बुझा लोगे
उसके जी से पूछो जो पत्थर की तरह चुप रहती है
पत्थर लेकर गलियों-गलियों लड़के पूछा करते हैं
हर बस्ती में आगे शोहरत मेरी पहुँचती है
मुद्दत से इक लड़की के रुखसार की धूप नहीं आई
इसीलिए मेरे कमरे में इतनी ठंडक रहती है