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छल गया जीवन मुझे भी / हरिवंशराय बच्चन
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छल गया जीवन मुझे भी।
देखने में था अमृत वह,
हाथ में आ मधु गया रह
और जिह्वा पर हलाहल!
विश्व का वचन मुझे भी।
छल गया जीवन मुझे भी।
गीत से जगती न झूमी,
चीख से दुनिया न घूमी,
हाय, लगते एक से अब गान औ’ क्रंदन मुझे भी।
छल गया जीवन मुझे भी।
जो द्रवित होता न दुख से,
जो स्रवित होता न सुख से,
श्वास क्रम से किंतु शापित कर गया पाहन मुझे भी।
छल गया जीवन मुझे भी।