भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

छल गया जीवन मुझे भी / हरिवंशराय बच्चन

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:13, 1 अक्टूबर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन |संग्रह=आकुल अंतर / हरिवंशराय ब...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

छल गया जीवन मुझे भी।

देखने में था अमृत वह,
हाथ में आ मधु गया रह
और जिह्वा पर हलाहल!
विश्व का वचन मुझे भी।
छल गया जीवन मुझे भी।

गीत से जगती न झूमी,
चीख से दुनिया न घूमी,
हाय, लगते एक से अब गान औ’ क्रंदन मुझे भी।
छल गया जीवन मुझे भी।

जो द्रवित होता न दुख से,
जो स्रवित होता न सुख से,
श्वास क्रम से किंतु शापित कर गया पाहन मुझे भी।
छल गया जीवन मुझे भी।