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मैं था मेरी मधुबाला थी / हरिवंशराय बच्चन
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(१)
मैं था, मेरी मधुबाला थी,
अधरों में थी प्यास भरी,
नयनों में थे स्वप्न सुनहले,
कानों में थी स्वर लहरी;
सहसा एक सितारा बोला, ’यह न रहेगा बहुत दिनों तक!’
(२)
मैं था औ मेरी छाया थी,
अधरों पर था खारा पानी,
नयनों पर था तम का पर्दा,
कानों में थी कथा पुरानी;
सहसा एक सितारा बोला, ’यह न रहेगा बहुत दिनों तक!’
(३)
अनासक्त था मैं सुख-दुख से,
अधरों के कटु-कधु समान था,
नयनों को तम-ज्योति एक-सी,
कानों को सम रुदन-गान था,
सहसा एक सितारा बोला, ’यह न रहेगा बहुत दिनों तक!’