भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कौन मिलनातुर नहीं है / हरिवंशराय बच्चन

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:10, 2 अक्टूबर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन |संग्रह=आकुल अंतर / हरिवंशराय ब...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कौन मिलनातुर नहीं है?

आक्षितिज फैली हुई मिट्टी निरंतर पूछती है,
कब कटेगा, बोल, तेरी चेतना का शाप,
और तू हो लीन मुझमें फिर बनेगा शांत?
कौन मिलनातुर नहीं है?

गगन की निर्बाध बहती बायु प्रतिपल पूछती है,
कब गिरेगी टूट तेरी देह की दीवार,
और तू हो लीन मुझमें फिर बनेगा मुक्त?
कौन मिलनातुर नहीं है?

सर्व व्यापी विश्व का व्यक्तित्व मुझसे पूछता है,
कब मिटेगा बोल तेरा अहं का अभिमान,
और तू हो लीन मुझमें फिर बनेगा पूर्ण?
कौन मिलनातुर नहीं है?