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क्या तुझ तक ही जीवन समाप्त / हरिवंशराय बच्चन

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क्या तुझ तक ही जीवन समाप्त?

तेरे जीवन की क्यारी में
कुछ उगा नहीं, मैंने माना,
पर सारी दुनिया मरुथल है
बतला तूने कैसे जाना?
तेरे जीवन की सीमा तक क्या जगती का आँगन समाप्त?
क्या तुझ तक ही जीवन समाप्त?

तेरे जीवन की क्यारी में
फल-फूल उगे, मैंने माना,
पर सारी दुनिया मधुवन है
बतला तूने कैसे जाना?
तेरे जीवन की सीमा तक क्या जगती का मधुवन समाप्त?
क्या तुझ तक ही जीवन समाप्त?

जब तू अपने दुख में रोता,
दुनिया सुख से गा सकती है,
जब तू अपने सुख में गाता,
वह दुख से चिल्ला सकती है;
तेरे प्राणों के स्पंदन तक क्या जगती का स्पंदन समाप्त?
क्या तुझ तक ही जीवन समाप्त?