गाता विश्व व्याकुल राग / हरिवंशराय बच्चन

Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:39, 2 अक्टूबर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन |संग्रह=आकुल अंतर / हरिवंशराय ब...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

गाता विश्व व्याकुल राग।

है स्वरों का मेल छूटा,
नाद उखड़ा, ताल टूटा,
लो, रुदन का कंठ फूटा,
सुप्त युग-युग वेदना सहसा पड़ी है जाग।
गाता विश्व व्याकुल राग।

वीण के निज तार कसकर
और अपना साधकर स्वर
गान के हित आज तत्पर
तू हुआ था, किंतु अपना ध्येय गायक त्याग।
गाता विश्व व्याकुल राग।

उँगलियां तेरी रुकेंगी,
बज नहीं वीणा सकेगी,
राग निकलेगा न मुख से,
यत्न कर साँसें थकेंगी;
करुण क्रंदन में जगत के आज ले निज भाग।
गाता विश्व व्याकुल राग।

इस पृष्ठ को बेहतर बनाने में मदद करें!

Keep track of this page and all changes to it.