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तू कैसे रचना करता है / हरिवंशराय बच्चन

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(१)
तू कैसे रचना करता है?
तू कैसी रचना करता है?

अपने आँसू की बूँदों में--

अविरल आँसू की बूँदों में,
विह्वल आँसू की बूँदों में,
कोमल आँसू की बूँदों में,
निर्बल आँसू की बूँदों में--

लेखनी डुबाकर बारबार,
लिख छोटे-छोटे गीतों को
गाता है अपना गला फाड़,
करता इनका जग में प्रचार।

(२)
इनको ले बैठ अकेले में
तुझ-से बहुतेरे दुखी-दीन
खुद पढ़ते हैं, खुद सुनते हैं,
तुझसे हमदर्दी दिखलाते,
अपनी पीड़ा को दुलराते,
कहते हैं, ’जीवन है मलीन,
यदि बचने का कोई उपाय
तो वह केवल है एक मरण।’

(३)
तू ऐसे अपनी रचना कर,
तू ऐसी अपनी रचना कर,

जग के आँसू के सागर में--
जिसमें विक्षोभ छलकता है,
जिसमें विद्रोह बलकता है,
जय का विश्वास ललकता है,
नवयुग का प्रात झलकता है--

तू अपना पूरा कलम डुबा,
लिख जीवन की ऐसी कविता,
गा जीवन का ऐसा गायन,
गाए संग में जग का कण-कण।

(४)
जो इसको जिह्वा पर लाए,
वह दुखिया जग का बल पाए,
दुख का विधान रचनेवाला,
चाहे हो विश्व-नियंता ही,
इसको सुनकर थर्रा जाए।

घोषणा करे इसका गायक,
’जीवन है जीने के लायक,
जीवन कुछ करने के लायक,
जीवन है लड़ने के लायक,
जीवन है मरने के लायक,
जीवन के हित बलि कर जीवन।’