भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मेरी है पहेली बात! / महादेवी वर्मा

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:14, 3 अक्टूबर 2009 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मेरी है पहेली बात!

रात के झीने सितांचल-
से बिखर मोती बने जल,
स्वप्न पलकों में विचर झर
प्रात होते अश्रु केवल!
सजनि मैं उतनी करुण हूँ, करुण जितनी रात!

मुस्करा कर राग मधुमय
वह लुटाता पी तिमिर-विष,
आँसुओं का क्षार पी मैं
बाँटती नित स्नेह का रस!
सुभग में उतनी मधुर हूँ, मधुर जितना प्रात!

ताप-जर्जर विश्व-उर पर-
तूल से घन छा गये भर,
दु:ख से तप हो मृदुलतर
उमड़ता करुणाभरा उर!
सजनि मैं उतनी सजल जितनी सजल बरसात!