भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मोरपखा सिर ऊपर राखिहौं / रसखान

Kavita Kosh से
137.138.179.152 (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 14:37, 13 नवम्बर 2006 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मोरपखा सिर ऊपर राखिहौं, गुंज की माल गरे पहिरौंगी।

ओढ़ि पिताम्बर लै लकुटी, बन गोधन ग्वालन संग फिरौंगी।।

भावतो तोहिं जो है रसखान, तो तोरे कहे सब स्वाँग भरौंगी।

पै वा मुरली मुरलीधर की, अधरान धरी अधरा न धरौंगी।।