भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हो मधुर सपना तुम्हारा / हरिवंशराय बच्चन
Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:50, 3 अक्टूबर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन |संग्रह=निशा निमन्त्रण / हरिवं...)
हो मधुर सपना तुम्हारा!
पलक पर यह स्नेह चुम्बन
पोंछ दे सब अश्रु के कण,
नींद की मदिरा पिलाकर दे भुला जग-क्रूर-कारा!
हो मधुर सपना तुम्हारा!
दे दिखाई विश्व ऐसा,
है रचा विधि ने न जैसा,
दूर जिससे हो गया है बहिर अंतर्द्वन्द सारा!
हो मधुर सपना तुम्हारा!
कंठ में हो गान ऐसा,
था सुना जग ने न जैसा,
और स्वर से स्वर मिलाकर गा रहा हो विश्व सारा!
हो मधुर सपना तुम्हारा!