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साथी, देख उल्कापात / हरिवंशराय बच्चन

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साथी, देख उल्कापात!

टूटता तारा न दुर्बल,
चमकती चपला न चंचल,
गगन से कोई उतरती ज्योति वह नवजात!
साथी, देख उल्कापात!

बीच ही में क्षीण होकर,
अंतरिक्ष विलीन होकर
कर गई कुछ और पहले से अँधेरी रात!
साथी, देख उल्कापात!

मैं बहुत विपरीत इसके
तम-प्रपूरित गीत जिसके,
हो उठेगी दीप्ति उसके मौन के पश्चात!
साथी, देख उल्कापात!