भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गिरजे से घंटे की टन-टन / हरिवंशराय बच्चन
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:30, 4 अक्टूबर 2009 का अवतरण
गिरजे से घंटे की टन-टन!
मंदिर से शंखों की तानें,
मस्जिद से पाबंद अजानें
उठ कर नित्य किया करती हैं अपने भक्तों का आवाहन!
गिरजे से घंटे की टन-टन!
मेरा मंदिर था, प्रतिमा थी,
मन में पूजा की महिमा थी,
किंतु निरभ्र गगने से गिरकर वज्र गया कर सबका खडन!
गिरजे से घंटे की टन-टन!
जब ये पावन ध्वनियाँ आतीं,
शीश झुकाने दुनिया जाती,
अपने से पूछा करता मैं, करूँ कहाँ मैं किसका पूजन!
गिरजे से घंटे की टन-टन!