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धूप आई है मुझको फैलाने / बशीर बद्र
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धूप आई है मुझको फैलाने
शामियाना मिरा हवा ताने
झूमते फूल मांगते हैं दुआ
अब हवा आये हमको बिखराने
धूप के ऊँचे नीचे रास्तों को
एक कमरे का बल्ब क्या जाने
हाथ को हाथ छू नहीं सकते
उँगलियों का नसीब दस्ताने
तेज़ पहियों की धूल में डूबे
पेड़ थककर खड़े है सुस्ताने