भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आज रोती रात, साथी / हरिवंशराय बच्चन

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:57, 4 अक्टूबर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन |संग्रह=निशा निमन्त्रण / हरिवं...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आज रोती रात, साथी!

घन तिमिर में मुख छिपाकर
है गिराती अश्रु झर-झर,
क्या लगी कोई हृदय में तारकों की बात, साथी!
आज रोती रात, साथी!

जब तड़ित क्रंदन श्रवणकर
काँपती है धरणि थर थर,
सोच, बादल के हृदय ने क्या सहे आघात, साथी!
आज रोती रात, साथी!

एक उर में आह ’उठती,
निखिल सृष्टि कराह उठती,
रात रोती, भीग उठता भूमि का पट गात, साथी!
आज रोती रात, साथी!