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ऎसे मैं मन बहलाता हूँ / हरिवंशराय बच्चन
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ऐसे मैं मन बहलाता हूँ!
सोचा करता बैठ अकेले
गत जीवन के सुख-दुख झेले,
दर्शनकारी स्मृतियों से मैं उर के छाले सहलाता हूँ!
ऐसे मैं मन बहलाता हूँ!
नहीं खोजने जाता मरहम,
होकर अपने प्रति अति निर्मम
उर के घावों को आँसू के खारे जल से सहलाता हूँ!
ऐसे मैं मन बहलाता हूँ!
आह निकल मुख से जाती है,
मानव की ही तो छाती है
लाज नहीं मुझको देवों में यदि मैं दुर्बल कहलाता हूँ!
ऐसे मैं मन बहलाता हूँ!