भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ऎसे मैं मन बहलाता हूँ / हरिवंशराय बच्चन

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:41, 5 अक्टूबर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन |संग्रह=निशा निमन्त्रण / हरिवं...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ऐसे मैं मन बहलाता हूँ!

सोचा करता बैठ अकेले
गत जीवन के सुख-दुख झेले,
दर्शनकारी स्मृतियों से मैं उर के छाले सहलाता हूँ!
ऐसे मैं मन बहलाता हूँ!

नहीं खोजने जाता मरहम,
होकर अपने प्रति अति निर्मम
उर के घावों को आँसू के खारे जल से सहलाता हूँ!
ऐसे मैं मन बहलाता हूँ!

आह निकल मुख से जाती है,
मानव की ही तो छाती है
लाज नहीं मुझको देवों में यदि मैं दुर्बल कहलाता हूँ!
ऐसे मैं मन बहलाता हूँ!