भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हुस्ने-सीरत पर नज़र कर, हुस्ने-सूरत को न देख / आरज़ू लखनवी
Kavita Kosh से
चंद्र मौलेश्वर (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:10, 5 अक्टूबर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=आरज़ू लखनवी }} {{KKCatGhazal}} <poem> हुस्ने-सीरत पर नज़र कर, ह...)
हुस्ने-सीरत पर नज़र कर, हुस्ने-सूरत को न देख।
आदमी है नाम का गर ख़ू नहीं इन्सान की॥
ध्यान आता है कि टूटा था, ग़लमफ़हमी में अहद।
यादगार इक है तो धुंधली सी मगर किस शान की॥