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जग का-मेरा प्यार नहीं था / हरिवंशराय बच्चन

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जग-का मेरा प्यार नहीं था!

तूने था जिसको लौटाया,
क्या उसको मैंने फिर पाया?
हृदय गया था अर्पित होने, साधारण उपहार नहीं था!
जग-का मेरा प्यार नहीं था!

सीमित जग से सीमित क्षण में
सीमाहीन तृषा थी मन में,
तुझमें अपना लय चाहा था, हेय प्रणय अभिसार नहीं था!
जग-का मेरा प्यार नहीं था!

स्वर्ग न जिसको छू पाया था,
तेरे चरणों में आया था,
तूने इसका मूल्य न समझा, जीवन था, खिलवार नहीं था!
जग-का मेरा प्यार नहीं था!