सुई और तागे के बीच में / केदारनाथ सिंह
माँ मेरे अकेलेपन के बारे में सोच रही है
पानी गिर नहीं रहा
पर गिर सकता है किसी भी समय
मुझे बाहर जाना है
और माँ चुप है कि मुझे बाहर जाना है
यह तय है
कि मैं बाहर जाउंगा तो माँ को भूल जाउंगा
जैसे मैं भूल जाउंगा उसकी कटोरी
उसका गिलास
वह सफ़ेद साडी जिसमें काली किनारी है
मैं एकदम भूल जाउँगा
जिसे इस समूची दुनियाँ में माँ
और सिर्फ मेरी माँ पहनती है
उसके बाद सर्दियाँ आ जायेंगी
और मैने देखा है कि सर्दियाँ जब भी आती हैं
तो माँ थोडा और झुक जाती है
अपनी परछाई की तरफ
ऊन के बारे में उसके विचार
बहुत सख्त है
मृत्यु के बारे में बेहद कोमल
पक्षियों के बारे में
वह कभी कुछ नहीं कहती
हाँलाकि नींद में
वह खुद एक पक्षी की तरह लगती है
जब वह बहुत ज्यादा थक जाती है
तो उठा लेती है सुई और तागा
मैंने देखा है कि जब सब सो जाते हैं
तो सूई चलाने वाले उसके हाँथ
देर रात तक
समय को धीरे धीरे सिलते हैं
जैसे वह मेरा फ़टा हुआ कुर्ता हो
पिछले साठ बरसों से
एक सूई और तागे के बीच
दबी हुई है माँ
हालांकि वह खुद एक करघा है
जिस पर साठ बरस बुने गये हैं
धीरे धीरे तह पर तह
खूब मोटे और गझिन और खुरदुरे
साठ बरस