चालाकी / शिवप्रसाद जोशी
हर गुज़रने वाले की निगाह उस पर पड़ती
तो दुनिया में सभी चालाक हो जाते
वो बस एक किनारे बैठी रहती है
जो देख ले वो उसे ले जाए
फिर वो वहीं लौट आती है
इस तरह अपने लोग तैयार करती रहती है...
चालाकी करने वाले लोग अक्सर बहुत सहज दिखते हैं
ये उसका गुण है सबसे बुनियादी
कि वो अपना काम ठीक से करती है
उसके पास कुछ गंभीर वाक्य है
मसलन मैं तो जी बहुत सीधा-सादा हूँ
बार-बार बुलवाती है किसी से चालाकी
और मजाल है कि ज़ाहिर हो जाए
वे जो गुस्से में रहते हैं
वे जो गुस्से में नहीं दिखते वे जो किसी को देखते रहते हैं हमेशा
वे जो सिर झुकाए चलते रहते हैं
वे जो मतलब निकालते हैं हर बात का
वे जो बोलते रहते हैं लगातार
वे जो चुप रहते हैं
वे जो प्रसन्न हैं और बेतक़ल्लुफ़
वे जो उदास हैं और बोर
सावधान चालाक लोग हो सकते हैं
चालाकी में कला है
ताड़ लेती है कि सामने वाले के पास क्या है
बाज़ दफा़ वो इतनी शातिरी से दिल तक निकाल ले जाती है
कि शक भी न हो किसी को
झाड़ियों में फेंक देती है उसे या हवा में उछाल देती है
इतनी निर्मम होती है चालाकी
लेकिन ये पता कहाँ चलता है...
चालाक व्यक्ति किसी के सम्मान में कोई कमी नहीं करता
चालाकी से ही संभव करता है अपमान
किसी का नामो-निशान कैसे मिटाना है
ये चालाकी से ही सीखा जा सकता है...
जो लोग चालाक नहीं है
वे एक स्वप्न में रहते हैं
उन्हें सच्चाई जान पड़ती है
हर किसी की बात पर
जब कोई हँसता है उनकी बात की दाद में
वे ख़ुश हो जाते हैं बच्चों की तरह
इस ख़ुशी पर अचानक पत्थर गिराकर भी जा सकती है चालाकी।