भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

क्षणिकायें-3 / शमशाद इलाही अंसारी

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:48, 8 अक्टूबर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शमशाद इलाही अंसारी |संग्रह= }} {{KKCatGhazal}} <poem> '''1. खा के त...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

1.

खा के तीर मरने से पहले जो चेहरा देखा,
वो मेरे दाहिने हाथ के मानिंद था,
जब भी हुई तफ़शीस किसी कत्ल की
क़ातिल हमेशा मक़्तूल का बग़लग़ीर था|
(रचनाकाल : 03.09.2009)

2.

ज़िन्दगी में न ज़िन्दगी से तू उदास हो कभी,
ये वो जाम है कि भर-भर के पिया जाता है|
(रचनाकाल: 15.09.2002}

3.

दुश्मनी में न कर पाँयेगे मेरा बाल भी बाँका
है रक़ीबों को मश्विरा की दोस्ती कर लें|
(रचनाकाल: 10.11.2005)