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दान / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"

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वासन्ती की गोद में तरुण,
सोहता स्वस्थ-मुख बालारुण;
चुम्बित, सस्मित, कुंचित, कोमल
तरुणियों सदृश किरणें चंचल;

किसलयों के अधर यौवन-मद
रक्ताभ; मज्जु उड़ते षट्पद।
खुलती कलियों से कलियों पर
नव आशा--नवल स्पन्द भर भर;
व्यंजित सुख का जो मधु-गुंजन
वह पुंजीकृत वन-वन उपवन;
हेम-हार पहने अमलतास,
हँसता रक्ताम्बर वर पलास;
कुन्द के शेष पूजार्ध्यदान,
मल्लिका प्रथम-यौवन-शयान;
खुलते-स्तबकों की लज्जाकुल
नतवदना मधुमाधवी अतुल;