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ज्येष्ठ / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"

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(१)
ज्येष्ठ! क्रूरता-कर्कशता के ज्येष्ठ! सृष्टि के आदि!
वर्ष के उज्जवल प्रथम प्रकाश!
अन्त! सृष्टि के जीवन के हे अन्त! विश्व के व्याधि!
चराचर दे हे निर्दय त्रास!
सृष्टि भर के व्याकुल आह्वान!--अचल विश्वास!
देते हैं हम तुम्हें प्रेम-आमन्त्रण,
आओ जीवन-शमन, बन्धु, जीवन-धन!

(२)
घोर-जटा-पिंगल मंगलमय देव! योगि-जन-सिद्ध!
धूलि-धूसरित, सदा निष्काम!
उग्र! लपट यह लू की है या शूल-करोगे बिद्ध
उसे जो करता हो आराम!