भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दूल्ह राम / तुलसीदास

Kavita Kosh से
Rajeevnhpc102 (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 06:05, 9 अक्टूबर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: दूल्ह राम, सीय दुलही री।<br /> घन-दामिन-बर बरन, हरन-मन सुन्दरता नख-शिख ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दूल्ह राम, सीय दुलही री।
घन-दामिन-बर बरन, हरन-मन सुन्दरता नख-शिख निबही री॥
ब्याह-विभूषन-बसन-बिभूषित, सखि-अवली लखि ठगि सी रही री॥
जीवन-जनम-लाहु लोचन फल है इतनोइ, लह्यो आजु सही री॥
सुखमा-सुरभि सिंगार-छीर दुहि, मयन अमिय मय कियो है दही री॥
मथि माखन सिय राम सँवारे, सकल भुवन छवि मनहुँ मही री॥
तुलसिदास जोरी देखत सुख सोभा, अतुल न जाति कही री॥
रूप रासि बिरची बिरंची मनो, सिला लवनि रति काम लही री॥