भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
क्या वो लम्हा ठहर गया होगा.. / श्रद्धा जैन
Kavita Kosh से
Shrddha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:05, 9 अक्टूबर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= श्रद्धा जैन }} {{KKCatGhazal}} <poem> जब मिटा कर नगर गया होगा ए...)
जब मिटा कर नगर गया होगा
एक लम्हा ठहर गया होगा
है वो हैवान, आईने में मगर
ख़ुद से मिलते ही, डर गया होगा
तेरे कूचे से खाली हाथ लिए
वो मुसाफ़िर, किधर गया होगा
छाँव की चाह में वो जलता बदन
शाम होते ही घर गया होगा
खिल उठी फिर से इक कली "श्रद्धा"
ज़ख़्म-ए-दिल कोई भर गया होगा