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चाहो तो तुम बुलाओ / रमा द्विवेदी

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तेरी राह में खड़े,हैं चाहो तो तुम बुलाओ।
चाहो तो तुम पुकारो,चाहो तो न बुलाओ॥

तुमने बनाया दासी,तुमने बनाया वनवासी,
तुमने बनाया पत्थर,तुमने बनाया देवी।
अब और क्या बनें हम, चाहो तो तुम बताओ?
तेरी राह में खड़े हैं,चाहो तो तुम बुलाओ॥

तेरे दिए गमों को पीते रहे हैं ऐसे
, मीरा ने हँसते-हँसते विष को पिया था जैसे।
अब और क्या सज़ा है, चाहो तो तुम सुनाओ?
तेरी राह में खड़े हैं चाहो तो तुम बुलाओ॥

कभी तुमने गले लगाया,कभी तुमने हाथ छुड़ाया,
कभी तुमने साथ निभाया,कभी तुमने स्वांग रचाया।
अब और क्या बचा है,चाहो तो तुम बताओ?
तेरी राह में खड़े हैं,चाहो तो तुम बुलाओ॥

तेरे ही वास्ते हम, मिटते रहे हैं हरदम,
फिर भी वफ़ा न की तुमने,करते रहे जफ़ा तुम।
अब और क्या करोगे, चाहो तो तुम बताओ?
तेरी राह में खड़े हैं, चाहो तो तुम बताओ॥

इस युग से पूछते हैं,कब तक रहेंगे शापित,
हम खुद को ढूँढ़ते हैं,अपनों के बीच अब तक।
अब और न सहेंगे चाहो तो भूल जाओ।
तेरी राह में खड़े हैं,चाहो तो तुम बुलाओ॥