भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दूर तक पानी ही पानी है / जहीर कुरैशी
Kavita Kosh से
द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:23, 15 अक्टूबर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जहीर कुरैशी |संग्रह=समंदर ब्याहने आया नहीं है / …)
दूर तक पानी ही पानी है
ये समन्दर की कहानी है
अपने ही घर में लगाएँ आग
ये कहाँ की बुद्धिमानी है
हर तरफ़ संदेह है, शक है
हर कदम पर सावधानी है
राज-पथ है, राज-नेता हैं
देश की ये राजधानी है
आप चिंतित क्यों नहीं होंगे
आपकी बिटिया सयानी है
प्यास शबनम से नहीं बुझती
प्यास का उपचार पानी है
आपकी कविता नई होगी
आपकी भाषा पुरानी है