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भव अर्णव की तरणी तरुणा / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"

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भव-अर्णव की तरुणी तरुणा|
बरसीं तुम नयनों से करुणा|

हार हारकर भी जो जीता,--
सत्य तुम्हारी गाई गीता,--
हुईं असित जीवन की सीता,
दाव-दहन की श्रावण-वरुणा।

काटे कटी नहीं जो कारा
उसकी हुईं मुक्ति की धारा,
वार वार से जो जन हारा।
उसकी सहज साधिका अरुणा।